कोरोना की भविष्यवाणी कर चुके वैज्ञानिक ने बताया, क्यों मारे जाएंगे 16 करोड़ से ज्यादा

कोरोना की भविष्यवाणी

आज से 14 साल पहले ही वैज्ञानिक लैरी ब्रिलियंट (Larry Brilliant) ने बता दिया था कि दुनिया में कौन सी महामारी कोहराम मचाने वाली है. ये वैज्ञानिक वहीं हैं, जिन्होंने स्मॉलपॉक्स को हराने का नुस्खा खोजा था. साल 2006 में उन्होंने एक वार्ता के दौरान कहा था कि आने वाली महामारी लगभग एक अरब लोगों को अपनी चपेट में लेगी, जबकि साढ़े 16 करोड़ से ज्यादा की आबादी खत्म हो जाएगी. बीमारी का असर अर्थव्यवस्था पर भी बुरी तरह से पड़ेगा. नौकरियां चली जाएंगी और इसके बाद पूरी दुनिया में डिप्रेशन का दौर शुरू होगा.

Larry की ये भविष्यवाणी उस वक्त इतनी डराने वाली थी कि किसी ने ध्यान नहीं दिया. अब जबकि उनकी भविष्यवाणी सच हो चुकी है. ऐसे में Ending Pandemics के चेयरमैन और WHO के साथ संक्रामक बीमारियों पर काम कर रहे लैरी ने एक इंटरव्यू के दौरान कई बातें कहीं. इंटरव्यू WIRED में प्रकाशित हुआ है. पढ़िए, कोरोना के इलाज पर क्या कहते हैं ये वैज्ञानिक.


साल 2006 में आपने आने वाली महामारी की बात कही थी और मदद मांगी थी. क्या आपको मदद मिल सकी?



ऐसा पूरी तरह से नहीं हो सका. वैज्ञानिक तबका सबको इस बारे में सचेत करने की कोशिश कर रहा था. ये पक्का था कि बीमारी आने वाली है, कब आएगी, ये नहीं पता था. लोगों को समझाना मुश्किल है. मिसाल के तौर पर राष्ट्रपति ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में ऐडमिरल को बाहर कर दिया, जो महामारी से रोकने के लिए जिम्मदार व्यक्ति होता. एडमिरल के जाने के साथ ही उनके साथ सारे कर्मचारी भी चले गए. और इसके बाद ट्रंप ने दुनियाभर के देशों का फंड भी हटा दिया. ये बताता है कि हम महामारी के लिए तैयार नहीं थे.


कोरोना की भविष्यवाणी

इसे novel वायरस कहा जा रहा है. इसके पीछे क्या वजह है?


इसका मतलब ये नहीं कि ये वायरस किसी काल्पनिक कहानी से आया है. इसका सीधा मतलब ये है कि ये वायरस नया है. पूरी दुनिया में ऐसा एक भी इंसान नहीं, जिसके भीतर इस बीमारी के लिए इम्युनिटी हो. यहां हम बता दें कि इम्युनिटी उसी बीमारी के खिलाफ आती है, जिसके खिलाफ हमारा शरीर एक बार लड़ चुका हो. यानी कोविड-19 दुनिया के 780 करोड़ लोगों के लिए खतरा है.

चूंकि ये वायरस नया है और हम इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते. तो क्या आपको लगता है कि अगर किसी को एक बार कोरोना हो जाए तो दोबारा नहीं होगा.


नया होने के बावजूद आखिरकार ये एक वायरस है, जिसकी प्रवृति दूसरे वायरस की तरह ही होनी चाहिए. हालांकि कई लोग कह रहे हैं कि एक बार रिकवर होने के बाद वे दोबारा कोरोना पॉजिटिव हो गए लेकिन मेरे हिसाब से ये असल संक्रमण की बजाए गलत टेस्ट रिजल्ट रहा होगा.


क्या यह अब तक का सबसे बुरा प्रकोप है?


यह हमारे जीवनकाल में सबसे खतरनाक महामारी है.

कोरोना की भविष्यवाणी

हमें कई चीजें करने को कहा जा रही है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ- जैसे घर में रहें, लोगों से 6 फीट दूर रहें, सामूहिक समारोहों में न जाएं.क्या हमें सही सलाह मिल रही है?


हां, ये बिल्कुल सही सलाह है. बदकिस्मती से हमें अमेरिका के राष्ट्रपति से पहले 12 हफ्तों के दौरान ये सलाह नहीं मिली. यहां तक कि अब भी बहुत से लोग उनकी बात के कारण निश्चिंत हैं. मैंने पहले कभी इससे ज्यादा गैरजिम्मेदार बात किसी चुने हुए अफसर को कहते नहीं सुना.

लेकिन अब जो आप सुन रहे हैं, जैसे खुद को अलग-थलग कर लेना, स्कूल या किसी समारोह में न जाना, समारोह टाल देना, ये बिल्कुल ठीक है. अब सवाल ये आता है कि क्या इससे हम पूरी तरह से सुरक्षित हो जाएंगे या फिर क्या दुनिया बच जाएगी? नहीं लेकिन ये अच्छा तरीका है अगर हम वक्त के साथ बीमारी को फैलने से रोकना चाहते हैं.


फिलहाल हम महामारी की रफ्तार कम करने की कोशिश कर रहे हैं. इसे हम विज्ञान की भाषा में flattening the curve कहते हैं. यानी हम बीमारी को रोक नहीं सकेंगे लेकिन उसकी गति को कम कर सकेंगे. इस दौरान वायरस का इलाज मिल सकेगा. हालांकि इसमें 12 से 18 महीने का वक्त लगेगा.

इसका क्या मतलब है?


इसका अर्थ है कि तब तक बहुत से लोग इस बीमारी की चपेट में आकर इसके लिए इम्यून हो चुके होंगे. और दूसरा कि तब तक हमारे पास इसका टीका होगा. यानी इन दोनों बातों के साथ हम बीमारी से लड़ने के लिए लगभग 80% तक तैयार होंगे. मैं उम्मीद करता हूं कि हमें कोविड -19 के लिए एक एंटीवायरल मिलेगा जो इसका इलाज भी कर सके और रोगनिरोधी भी हो यानी बीमारी होने से भी बचा सके. हालांकि ये निश्चित रूप से विवादास्पद है,

और बहुत से लोग मुझसे सहमत भी नहीं होंगे लेकिन मेरे दो शोध इसकी पुष्टि करते हैं जो Nature और Science पत्रिकाओं में साल 2005 में छपे भी हैं. Covid-19 को हराने की जंग में वैज्ञानिक लगे हुए हैं और पक्के तौर पर ऐसा वैक्सीन तैयार हो सकेगा.


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फिलहाल हम महामारी की रफ्तार कम करने की कोशिश कर रहे हैं



हम काम पर वापस कब जा पाएंगे?



फिलहाल दक्षिण कोरिया से एक अच्छी खबर है कि उनके पास आज 100 से भी कम मामले आए हैं. हम लोग चीन का मॉडल फॉलो नहीं कर सकते. हम अपने लोगों को घरों में बंद नहीं कर सकते, लेकिन कोरिया का तरीका अपना सकते हैं. हालांकि हमें जांच की अपनी संख्या बढ़ाने की जरूरत है. अबतक कोरिया ने 2 लाख जांचें कर ली हैं, जबकि हम इससे बहुत पीछे हैं.


अब जबकि हमने प्रारंभिक जांच का मौका गंवा दिया है, तो क्या इसमें बहुत देर हो गई है?



बिल्कुल नहीं. अब हमें जांच के मामले में stochastic तरीका अपनाने की जरूरत है. इसका मतलब ये है कि प्रॉबेबलिटी टेस्ट करना होगा. हमें नहीं पता कि वायरस कहां-कहां फैल चुके हैं. मिसिसिपी में कोई मामला नहीं आया क्योंकि ये दिख नहीं रहा है. ज़िम्बाब्वे में जीरो मामले हैं क्योंकि उनके पास जांच की सुविधा नहीं है. अब इस वायरस की जांच के मामले में हमें कुछ ऐसा करने की जरूरत है जो घर पर ही प्रेगनेंसी की जांच की तरह आसानी से हो सके.


क्या आप डरे हुए हैं?



मैं उस उम्र में हूं, जिसकी मृत्यु दर 7 में से 1 है. अगर आप डरे हुए नहीं हैं तो आप समझ नहीं रहे हैं. वैसे मैं डरा हुआ नहीं. मैं पक्का हूं कि अब हम जो कदम उठा रहे हैं, वो वायरस के फैलने का वक्त बढ़ा देगी. और मुझे ऐसा लगता है कि इस बीच वैक्सीन खोजी जा सकेगी. या फिर वो वैक्सीन मिल जाएगी जो बीमारी को क्योर कर सके. दोनों ही हालातों में हम इसपर काबू पा सकेंगे. सबको बिना डरे ये याद रखना है कि ये कयामत नहीं है.


कोरोना की भविष्यवाणी
जांच की अपनी संख्या बढ़ाने की जरूरत है



क्या हमें मास्क पहनना चाहिए?



N95 मास्क अपने आप में बेहद कारगर है. मास्क में छेद तीन माइक्रॉन चौड़े होते हैं. वायरस 1 माइक्रॉन चौड़ा है. यानी लोग कहेंगे कि मास्क बेकार है. लेकिन अगर आप 3 कद्दावर खिलाड़ी, जो लंच के लिए दौड़ रहे हों, को एक दरवाजे से एक ही वक्त पर निकालने की कोशिश करेंगे तो वो पार नहीमं जा सकेंगे. नए डाटा में इसे 5x तक सुरक्षा देने वाला बताया जा रहा है. ये बहुत अच्छा है. लेकिन हमें अस्पताल चालू रखने के लिए हेल्थ वर्कर्स को सुरक्षा देने की जरूरत है. इसलिए ये मास्क सबसे पहले उनके ही पास पहुंचने चाहिए.


हमें कैसे पता चलेगा कि हम इससे उबर चुके हैं?



दुनिया तब तक सामान्य नहीं दिखेगी, जब तक 3 बातें न हो जाएं.


पहला- हमें ये समझना होगा कि वायरस का फैलाव किस तरह से है. या फिर वो समंदर के नीचे डूबे बर्फ के पहाड़ की तरह है जो ऊपर से छोटा सा दिखता है. अगर ऐसा है कि अभी हम इस वायरस का सिर्फ सातवां हिस्सा ही देख पा रहे हैं तो ये हालात बहुत खतरनाक है.

दूसरा- हमारे पास एक इलाज हो, चाहे कोई वैक्सीन या फिर एंटीवायरस.



तीसरा- हम ऐसे लोगों को देखने लगें, खासकर अस्पताल स्टाफ, डॉक्टर, टीचर या पुलिसवाले, जो इस बीमारी का शिकार होकर इसके लिए इम्यून हो चुके हों. ऐसे में हम उनपर जांच सकें कि वे अब संक्रमित नहीं. इसके बाद हम ऐसे लोगों को छांटकर उन्हें कोई कार्ड दे सकते हैं जिसपर इसका जिक्र हो. इसके बाद हम अपने बच्चों को निश्चिंत होकर स्कूल भेज सकते हैं क्योंकि उनके टीचर या काम करने वाले लोग संक्रमित नहीं हैं. इसके बाद सभी जगहों और अस्पतालों में भी व्यवस्था पुरानी लीक पर लौट सकती है क्योंकि सभी जगहों पर वही लोग होंगे जो इसके लिए इम्यून होंगे.

क्या इसका कोई अच्छा पहलू भी है?




वैज्ञानिक होने के साथ मैं एक आस्तिक भी हूं. हो सकता है कि ईश्वर ने किसी ऐसी वजह से ये किया हो ताकि हमारा चरित्र और निखरकर सामने आए. फिलहाल लोगों में जो जुड़ाव दिख रहा है, वो उम्मीद से काफी ज्यादा है. बच्चे, युवा उन बुजुर्गों की मदद कर रहे हैं जो उम्र की वजह से अब घर से बाहर नहीं निकल सकते. वे उनके लिए राशन-सब्जियां ला रहे हैं.


नर्सें लगातार घंटों काम कर रही हैं. डॉक्टर बिना डरे काम में लगे हैं. मैंने पहले ऐसा कभी नहीं देखा था. वास्तव में ये समय हमें परख रहा है. जब हम इससे बाहर निकलेंगे तो हो सकता है कि हम ये सोच सकें कि क्या वजह है कि हमारे बीच इतने मतभेद हैं.

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